आज अक्षय नवमी : सतयुग का प्रारम्भ दिवस माना जाता है

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गरियाबंद। वैसे इस वर्ष कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की `नवमी ,तिथि 09 नवंबर की रात 10 : 45 पीएम से शुरू हो चुकी है,किन्तु उदयतिथि अनुसार आज रविवार 10 नवंबर को, अक्षय नवमी मनाया जायेगा।

अक्षय नवमीं को ही आंवला नवमीं और छत्तीसगढ़ में आंवरा भात कहा जाता है। इसी दिन भगवान कृष्ण ने अपने कर्तव्यों की पूर्ति के लिये वृंदावन से मथुरा की यात्रा की थी। सतयुग का प्रारम्भ भी ईसी दिन से माना जाता है। कहा जाता है कि इस महापर्व पर भगवान विष्णु सहित आंवले के वृक्ष की पूजा करने तथा आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन पकाकर ग्रहण करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर माता लक्ष्मी को भगवान शंकर तथा भगवान विष्णु की एक साथ पूजा करने का विचार आया।भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है और शंकर जी को बेल पत्र, ईन दोनों वृक्षों के सभी गुण आंवले के वृक्ष में पाये जाते हैं। तब देवी लक्ष्मी ने दोनों देवताओं को एक साथ प्रसन्न करने की दृष्टि से आंवले के वृक्ष की पूजा की, जिस दिन ये पूजा की गई, वह तिथि कार्तिक माह की नवमीं थी। तभी से प्रति वर्ष कार्तिक मास की नवमीं को ये पर्व मनाया जाता है।

हिन्दू पर्व, पूजा विधि पर्यावरण संरक्षण का पर्याय

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई हर वस्तु यथा पेड़ पौधे नदी समुद्र पहाड़ पत्थर और विभिन्न जीव जंतु यहां तक कि कीड़े मकोड़े भी हमारे अस्तित्व के लिये आवश्यक है। जिस पर्यावरण के संरक्षण की बात हम आज करते हैं, हमारे पूर्वजों ने उसकी चिंता हजारों साल पहले ही शुरू कर दी थी।

पेड़ पौधों वृक्षों पत्थरों पहाड़ों को पूजने का अर्थ दरअसल उन्हें महत्व देना और संरक्षित करना है। इसीलिये हमारे ऋषि मुनियों मनीषियों ने हमारी पूजा विधि और पर्व त्योहारों का संबंध दिन बादल मौसम तथा ऋतुओं के अनुसार फलों पुष्पों वृक्षों नदी पहाड़ पत्थरों आदि प्राकृतिक वस्तुओं जीव जंतुओं के साथ जोड़ते हुये उनके महत्व और संरक्षण को अपरोक्ष रूप से परिभाषित किया है।

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