अवैध क्लिनिकों की मनमानी से मौतों का सिलसिला जारी, प्रशासनिक मिली-भगत सवालों के घेरे में

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गरियाबंद। छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार चरम पर है। राज्य के 27 आईएएस और 24 आईएफएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिनमें से कुछ जांच के दायरे में हैं तो कुछ जेल तक पहुंच चुके हैं। बावजूद इसके, व्यवस्था में सुधार के कोई संकेत नहीं दिख रहे।

इसी भ्रष्ट व्यवस्था का एक और उदाहरण गरियाबंद जिले में देखने को मिला, जहां अवैध क्लिनिक और पैथोलॉजी सेंटर खुलेआम संचालित हो रहे हैं। हाल ही में देवभोग क्षेत्र के टिकरापारा स्थित एक अवैध क्लिनिक में इलाज में लापरवाही की वजह से एक गर्भवती आदिवासी महिला और उसके अजन्मे बच्चे की दर्दनाक मौत हो गई। इस घटना से आदिवासी समाज में भारी आक्रोश है, और वे सड़कों पर उतरने की चेतावनी दे रहे हैं।

आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधि

लचर सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं, मजबूरी में झोलाछाप डॉक्टरों का सहारा

मृतक महिला योगेन्द्री को पहले अमलिपदर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया था, लेकिन वहां से बिना समुचित इलाज के लौटा दिया गया। जब दोबारा प्रसव पीड़ा हुई, तो परिजन मजबूरी में उसे टिकरापारा के एक निजी क्लिनिक में ले गये। वहां भी उचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने के कारण महिला को ओडिशा के धर्मगढ़ रेफर कर दिया गया, जहां उसकी मौत हो गई।

जांच टीम बनी, पर समय सीमा तय नहीं

घटना के बाद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) ने छह सदस्यीय जांच समिति गठित की, लेकिन इसकी रिपोर्ट के लिये कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार, देवभोग के अधिकारी पहले ही टिकरापारा के क्लिनिक को क्लीन चिट देने की तैयारी में हैं। एक विभाग दूसरे विभाग के किये कराये पर मिट्टी डालने तत्पर है।

CMHO गरियाबंद का आदेश पत्र

शहर में भी अवैध क्लिनिकों का जाल, प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में

गरियाबंद जिले के सुदूर गांवों में ही नहीं, बल्कि जिला मुख्यालय के कचहरी रोड, कुम्हारपारा और बाजार क्षेत्र में भी कई अवैध क्लिनिक और पैथोलॉजी सेंटर धड़ल्ले से चल रहे हैं। स्थानीय नागरिकों की शिकायतों को प्रशासन द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। अवैध क्लिनिक संचालन की लिखित शिकायतें स्वच्छ भारत मिशन के डस्टबीन में डाल दी जा रही है।

आदिवासी समाज सड़कों पर उतरने को तैयार

इस मामले में न्याय और उचित कार्यवाही की मांग को लेकर आदिवासी समाज ने आंदोलन की चेतावनी दी है। उनका आरोप है कि स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और प्रशासनिक मिलीभगत के कारण गरीब आदिवासी जनता को जान गंवानी पड़ रही है।

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