सुपरफूड का कम होता रकबा : श्रीअन्न के उत्पादन में कमी
किरीट ठक्कर, गरियाबंद। कभी गाड़ी पर नाव और कभी नाव पर गाड़ी, बदलती स्थितियों परिस्थितियों के लिये ये कहावत कही जाती है।
किसी समय गरीबों का निवाला समझे जाने वाले मोटे अनाज, यथा कोदो, कुटकी,रागी, बाजरा, मक्का आदि आज बड़े होटलों की महंगी डिश हो चुका है। अब इसका उपभोग अमीरों की मजबूरी के साथ साथ शान ओ शौकत का पर्याय बन चुका है।
आज इन मोटे अनाजों को प्रतिष्ठापूर्ण और प्रभावित नाम भी मिल चुका है। अब इन्हें श्रीअन्न, मिलेट्स और सुपरफूड भी कहा जाता है।
दरअसल ये छोटे बीज वाले मोटे अनाज घास परिवार से संबंधित है, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते है। सबसे बड़ी बात ये की ये अनाज ग्लूटेन मुक्त होते है।
मिलेट्स कम पानी में, कम उपजाऊ भूमि और सूखे क्षेत्रो में भी उगाये जा सकते हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिलेट्स उत्पादक देश है। वर्ष 2018 को नेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में माना गया था, जबकि 2023 अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया गया।
छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों के अलावा गरियाबंद जिले में भी मोटे अनाज की खेती होती रही है। जिले के मैनपुर व देवभोग ब्लॉक में कोदो, कुटकी, मक्का, रागी या जिसे क्षेत्रीय भाषा में माड़िया कहा जाता है का उत्पादन होता रहा है।

किन्तु अब स्थिति चिंताजनक है, कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार , गत वर्ष देवभोग ब्लॉक में मोटे अनाज का लक्ष्य 5855 हेक्टेयर रखा गया था, इस वर्ष 569 हेक्टेयर कम रखा गया है।
आम तौर पर देवभोग क्षेत्र में मक्के को छोड़कर स्माल मिलेट्स अर्थात कोदो कुटकी रागी की बोआई 20 जून तक कर दी जाती है किंतु इस वर्ष लगातार बारिश की वजह से बोआई अब तक नही हो पाई है। देवभोग में इस वर्ष मक्का बोआई का लक्ष्य कम करके स्माल मिलेट्स का लक्ष्य बढ़ाया गया है, किन्तु ये जानकारी केवल कागजी मालूम होती है।

कुछ किसानों के नाम सामने आते हैं, श्रीअन्न उत्पादक के तौर पर, किन्तु वे किसान अब कोदो कुटकी की बोनी से इंकार करते हैं।
जबकि कृषि विभाग , ब्लॉक स्तर पर शिविरों के आयोजन, कृषि चौपाल और मैदानी अमले द्वारा प्रचार प्रसार के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के प्रयास की बात करते हैं, हालांकि इसके नतीजे बिल्कुल देखने में नही आते।
क्षेत्रीय किसान धान के समर्थन मूल्य से अधिक प्रभावित और उत्साहित नजर आते हैं। मिलेट्स के बीजों का भी अभाव है।







