राजिम कुंभ कल्प 2025 : धर्म,आस्था और संस्कृति का त्रिवेणी संगम

12 फरवरी से 26 फरवरी तक होगा मेला का आयोजन
किरीट ठक्कर, गरियाबंद । भारतीय संस्कृति में तीर्थों एवं तीर्थयात्रा का बहुत महत्व है। चारधामों-उत्तर में बद्रीनाथ (सतयुग), दक्षिण में रामेश्वरम (त्रेतायुग), पश्चिम में द्वारिका (द्वापर युग) और पूर्व में पुरी (कलियुग) की यात्रा प्राचीनकाल से आज भी जारी है।
विभिन्न पुराणों में तीर्थ स्थलों एवं उनकी यात्रा के महात्म्य पर विस्तृत आख्यान मिलता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में महानदी-पैरी- सोंढूर तीन नदियों के त्रिवेणी संगम के समीप स्थित राजिम यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ है।
श्रीमद्राजीवलोचन महात्म्यम् नामक ग्रंथ में राजिम तीर्थ का वर्णन पद्मक्षेत्र या कमलक्षेत्र के रूप में मिलता है। राजीवलोचन (विष्णु) और कुलेश्वर (शिव) का यह संयुक्त धाम हरिहर क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।
मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा, राजिम स्थित साक्षी गोपाल के दर्शन से ही पूरी होती है। यही लोकमान्यता राजिम को साक्षी तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित करता है। भीष्म पर्व (महाभारत) में महानदी को चित्रोत्पला गंगा, कालिका खंड ग्रंथ के चित्रोत्पला महात्म्य में पैरी को प्रितोद्धारिणी और वामन पुराण में सोंढूर को सुदामा कहा गया है।
प्रयाग संगम के समान
यहाँ के धार्मिक जीवन में महानदी-पैरी-सोंदूर नदियों के संगम को पवित्र मानते हुये पर्वस्नान, दान, श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि संस्कारगत धार्मिक कार्य संपन्न किये जाते हैं। इसे प्रयाग संगम के समान ही पवित्र मानते हैं।
प्रतिवर्ष माघ माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर महाशिवरात्रि तक यहाँ विशाल मेला भरता है,जिसे स्थानीय परंपरा में धार्मिक मेला कहा जाता है। सदियों पुराने इस मेले को ही राजिम कुम्भ (कल्प) के रूप में अधिमान्यता दी गई है जिसके फलस्वरूप अब कल्प-प्रवास, पर्व-स्नान, धर्म-प्रवचन, संत-समागम में भाग लेने न केवल देश भर से हजारों तीर्थयात्री, नागा साधु-सन्यासी, विभिन्न पंथ-अखाड़ों के संत-महंत, मण्डलेश्वर-महामण्डलेश्वर और जगद्गुरू शंकराचार्य जैसे शीर्ष धार्मिक प्रतिनिधियों का यहाँ आगमन होता है वरन् अनेक विदेशी यात्री भी इस अनूठे आयोजन का साक्षी बनने पधारते हैं।
पद्मक्षेत्र : पांच शिवालयों का सम्मिलित क्षेत्र
प्रचलित लोकविश्वास है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु के नाभि कमल की एक पंखुड़ी पृथ्वी पर गिर गई। जहाँ यह पंखुड़ी गिरी वह भूभाग पद्मक्षेत्र कहलाया, जो वर्तमान कुलेश्वर को केन्द्र मानकर चम्पेश्वर, बावनेश्वर, फिंगेश्वर, कोपेश्वर और पटेश्वर- इन पांच शिवालयों का सम्मिलित क्षेत्र माना जाता है। आज भी इस पद्मक्षेत्र की प्रदक्षिणा अर्थात् राजिम की पंचकोशी यात्रा का विशेष धार्मिक महत्व है।
राजिम कुम्म (कल्प) मेला के दौरान यज्ञ, प्रवचन, कीर्तन, भजन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस आयोजन ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ को धार्मिक पर्यटन के केन्द्र के रूप में पहचान दिलाई है। यह आस्था, परंपरा और संस्कृति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करते हुये आध्यात्मिक शांति और सामाजिक समरसता का संदेश देता है।