daraparaa (1)

कुछ बादल थोड़े बरस गये,
कुछ ऐसे ही तरस गये।
अंजुरी भर सहेज गये,
बाकी नाले में बह गये।

छुपा छुपाई गुल्ली डंडा
बड़े खेल थे बचपन में
अपने भी थे संगी साथी
इधर गये,कुछ उधर गये

मेरी उम्र के साथ चला मेरा गांव ,
नगर हुआ फिर शहर हुआ
अब साइबेरियन की बीट यहां है
काले कौंवे किधर गये ?

तीन को पांच, चार को छह,
करना था कुछ करना था
पोषम पा अब मरना था
जो कर गये सो कर गये।

कुछ बादल थोड़े बरस गये
कुछ ऐसे ही तरस गये
अंजुरी भर सहेजे गये
बाकी नाले में बह गये

– किरीट ठक्कर

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