एक तरफ जच्चा बच्चा की मौत, दूसरी तरफ अंधेरे में गूंजती 6 किलकारियां

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किरीट ठक्कर। गरियाबंद

तो पहले हम बात करते हैं गुंजित किलकारियों की, जिले के अमलीपदर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीते 26 घंटों में खुशियों की छह किलकारियां गूंजीं, ये किलकारियां सिर्फ नवजात शिशुओं की नहीं थीं, बल्कि मुश्किल हालात में उम्मीद की नई किरण भी बनीं। तेज आंधी और बारिश के कारण अस्पताल में लगातार 18 घंटे तक बिजली बाधित रही, मगर इन विषम परिस्थितियों में भी वहां के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों ने हार नहीं मानी। मोबाइल फोन की थोड़ी-सी रोशनी के सहारे उन्होंने सुरक्षित प्रसव कराते हुये माँ और शिशुओं की जिंदगी बचाई।

किन्तु जिले के छुरा विकासखंड की, खैरझिटी गांव की ममता गोंड और उसके अजन्में बच्चे के लिये शुक्रवार का दिन, इस दुनिया का अंतिम दिन साबित हुआ। अस्पताल पहुँचने के बाद भी इलाज में देरी के कारण गर्भवती महिला ममता गौंड की मौत हो गई।

ममता 7 माह के गर्भ से थी, लेबर पेन होने पर शुक्रवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र छुरा में उसे भर्ती कराया गया था। परिजनों को आरोप है आधे घंटे तक कोई भी इलाज के लिये नहीं पहुंचा।

इसके पहले, परिजनों के अनुसार, ममता को पेट में तेज दर्द होने पर सुबह 9 बजे महतारी एक्सप्रेस 102 टोल फ्री नंबर पर बार-बार कॉल किया गया, किन्तु घंटी बजने के बाद भी कॉल रिसीव नहीं हुआ। लगभग दो घंटे बाद एंबुलेंस पहुंची, तब जाकर ममता को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र छुरा लाया गया।

अस्पताल पहुंचने के बाद भी मृतका को तुरंत इलाज नहीं मिल सका। परिजनों का आरोप है कि ममता अस्पताल पहुंचने के बाद भी जीवित थी और परिजनों से बात कर रही थी।

एक जानकारी के अनुसार वर्ष 2024 – 25 में जिले का स्वास्थ्य विभाग, राज्य से मिले प्रसव लक्ष्य का 30 प्रतिशत टारगेट भी पूरा नहीं कर पाया। वर्ष 2024 – 25 में जिले में कुल गर्भवती पंजीयन 17 हजार 569 के टारगेट में 7 हजार 628 पंजीयन हो पाया, और 15 हजार 972 के प्राप्त लक्ष्य में बीते वर्ष के माह अप्रैल से अक्टूबर तक केवल 4 हजार 351 संस्थागत और निजी प्रसव हो पाया था , जबकि शेष करीब 10 हजार संस्थागत प्रसव का होना मुश्किल बताया जा रहा था, जिसका कारण स्वास्थ्य विभाग में संस्थागत प्रसव को लेकर गंभीरता की कमी माना जा सकता है।

स्वास्थ्य परीक्षण भी मुश्किल

गर्भावस्था के दौरान प्रसूता महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण बहुत जरूरी होता है। जबकि जिला अस्पताल में ही महीने में केवल दो बार गर्भवती महिलाओं को सोनोग्राफी की सुविधा मिल पाती है। सोनोग्राफी के लिये तय दिन जिला अस्पताल में प्रसूता महिलाओं की भीड़ हो जाती है, घंटो तक लाइन में खड़े रहना पड़ता है, बैठने की भी समुचित व्यवस्था नही होती।

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